पटना | किसी महिला की मांग में जबरन सिंदूर लगाना हिंदू कानून के तहत विवाह नहीं है। हिंदू विवाह तब तक वैध नहीं है, जब तक वह स्वैच्छिक न हो और ‘सप्तपदी’ (दूल्हा और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के चारों ओर फेरे लेने) की रस्म के साथ न हो।
पटना हाईकोर्ट के जस्टिस पीबी बजंथ्री और जस्टिस अरुण कुमार झा ने 10 साल पहले हुए एक पकड़ौआ विवाह के मामले की सुनवाई करते हुए ये बातें कहीं। नवादा जिले के एक जवान की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पकड़ौआ विवाह को अमान्य बताया। 10 नवंबर को कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई थी। गुरुवार को इसका ऑर्डर जारी हुआ है।
याचिकाकर्ता रविकांत सेना में सिग्नलमैन थे। लखीसराय में बंदूक के बल पर 10 साल पहले उनकी जबरन शादी करा दी गई थी। उनसे जबरन दुल्हन की मांग में सिंदूर लगाने के लिए मजबूर किया गया था। कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी दुल्हन यह साबित करने में विफल रही कि सप्तपदी का मौलिक अनुष्ठान कभी पूरा हुआ था।
कथित विवाह कानून की नजर में ये अमान्य है। कोर्ट ने विवाह रद्द करते हुए कहा- हिंदू मैरेज एक्ट के मुताबिक, विवाह तब पूर्ण नहीं माना जाता, जब तक पवित्र अग्नि का दूल्हा-दुल्हन फेरे नहीं लेते। इसके विपरीत, यदि सप्तपदी नहीं है तो शादी पूरी नहीं मानी जाएगी।
