नई दिल्ली: पिछले दो महीने से मणिपुर आग की लपटों से जूझक रहा है लेकिन मणिपुर की सरकार से लेकर केंद्र तक इस गंभीर मुद्दे पर चुप बैठा हुआ है , आखिर क्यों दी माह से लगी इस आग को बुझाया नही जा पा रहा है , विपक्ष लगातार सवाल पूछ रहा है लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं है |मणिपुर में महिलाओं के साथ बर्बरता का वीडियो जब सामने आया तो हर किसी का उस विडिओ को देखकर रूह कांप उठी ।मणिपुर की बेकाबू भीड़ ने महिलाओं को नग्न अवस्था में घुमाया । उनका सरेआम कैमरे पर यौन शोषण किया गया। वीडियो वायरल होने के बाद लोगों को मणिपुर की भयावह स्थिति का अंदाजा हुआ। लोग कहने लगे कि राज्य की कानून और व्यवस्था पंगु हो चुकी है। वीडियो से एक बात फिर साबित हुई। हिंसा कहीं भी हो, महिलाओं का इस्तेमाल ताकत दिखाने के लिए होता है। महिलाओं के शरीर को शक्ति-प्रदर्शन का जरिया बना लिया जाता है। ।
- दो समुदायों में संघर्ष के चलते मई से हिंसा की आग में जल रहा मणिपुर
- मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने पर हुआ विवाद
- मणिपुर हाई कोर्ट के आदेश की पूर्व IAS ने निंदा की, दूसरा पहलू भी है
- भीड़ कैसे और क्यों महिलाओं को निशाना बना रही है, वजह समझिए
महिला सम्मान की बात करने वाली केंद्र सरकार क्या मणिपुर की महिलाओ को न्याय दिलाएगी
बताया जा रहा है की मणिपुर की हिंसा में महिलाओं के शरीर का खूब इस्तेमाल हुआ है । कभी दुश्मन को सुरक्षा के लिए खतरा बताने के लिए, कभी किसी ‘अपने’ और ‘बाहरी’ के लिए राजनीतिक हदें तय करने के लिए, कभी भारतीय सेना या पैरामिलिट्री फोर्सेज को दखल देने से रोकने के लिए महिलाओं को ढाल बनाया गया। 24 मई को चार महिलाओं को एक गाड़ी से जबरन उतारा गया। उनके कपड़े फाड़ दिए गए और सामान तहस-नहस कर दिया। महिलाओं के खिलाफ अलग-अलग अपराधों में प्रतिक्रिया अलग-अलग रही। इसी वजह से मणिपुर में कुछ लोगों का राज्य सरकार पर से भरोसा उठ चुका है कि वह न्याय करेगी।
बकौल होइनिलिंग, मणिपुर के पुलिस थानों में महिलाओं पर अत्याचार के कई और मामले लंबित पड़े हैं। बहुत सारी पीड़िताएं तो अभी FIR दर्ज कराने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहीं। मणिपुर के वीडियो पर जो भावुकता का उबाल आया है, उससे पीड़िताओं को न्याय दिलाने की दिशा में ठोस कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। उससे लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास बहाल होगा।
मणिपुर में ST का दर्जा मिलना क्यों अहम
अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने से एक समुदाय को नौकरियों में आरक्षण के अलावा कई अधिकार मिलते हैं। मणिपुर में, जनजातीय भूमि के हस्तांतरण को रोकने के लिए विशेष कानून बनाकर गैर-आदिवासी समुदायों द्वारा भूमि की खरीद को हतोत्साहित किया जा सकता है। अत्याचार निवारण अधिनियम लागू करने की क्षमता एक और अधिकार है। मणिपुर की अनुसूचित जनजातियों को वहां कमाई आय के लिए आयकर अधिनियम की धारा 10 (26) के तहत छूट भी मिलती है। लेकिन लोकुर समिति की टिप्पणियों के अनुसार, ‘जिन जनजातियों के सदस्य आम आबादी के साथ घुलमिल गए हैं, वे अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल होने के योग्य नहीं हैं… प्रत्येक जनजाति को खास तवज्जो की जरूरत नहीं समझी जाती।
