नई दिल्ली | उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी संसद भवन में सदन के नेता विपक्ष होंगे। मंगलवार (25 जून) को पार्टी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर इंडिया गठबंधन के नेताओं की बैठक के बाद इसकी घोषणा की। इसके बाद कांग्रेस संसदीय बोर्ड की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि माहताब को इस संदर्भ में पत्र लिखा।
राहुल अपने 20 साल के पॉलिटिकल करियर में पहली बार कोई संवैधानिक पद संभालेंगे। वे इस पद पर रहने वाले गांधी परिवार के तीसरे सदस्य होंगे। इससे पहले उनके पिता और पूर्व PM राजीव गांधी 1989-90 और मां सोनिया 1999 से 2004 तक इस पद पर रह चुकी हैं।
बहुमत के आभाव में 10 साल से खाली था नेता प्रतिपक्ष का पद
लोकसभा भवन में पिछले 10 साल से नेता प्रतिपक्ष का पद खाली था। 2014 और 2019 में किसी विपक्षी दल के पास इसके लिए जरूरी न्यूनतम 10% सदस्य नहीं थे। नेता प्रतिपक्ष पद के लिए दावा पेश करने के लिए किसी भी पार्टी को कुल 543 में से 55 सदस्यों का आंकड़ा पार करना होता है। 2024 के चुनाव में कांग्रेस 99 सीटों के साथ सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनी है। भाजपा की 240 और NDA की 293 सीटों के मुकाबले इंडिया गठबंधन 232 सीटें जीतने में कामयाब रही। इससे पहले 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 52 सीटें जीती थीं। 2014 के चुनाव में पार्टी सिर्फ 44 सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी।
नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद राहुल को कई शक्तियां और अधिकार
नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल को कई शक्तियां और अधिकार मिल जाएंगे। वे प्रधानमंत्री के साथ चीफ इलेक्शन कमिश्नर सहित चुनाव आयोग के दो अन्य सदस्यों की नियुक्ति का चयन करने वाले प्रमुख पैनल का हिस्सा होंगे।
इसके अलावा राहुल लोकपाल, ED-CBI डायरेक्टर, सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर, सेंट्रल इन्फॉर्मेशन कमिश्नर, NHRC प्रमुख को चुनने वाले समितियों के भी सदस्य होंगे। प्रधानमंत्री इन समितियों के अध्यक्ष होते हैं। ऐसा पहली बार ऐसा होगा, जब इन पदों पर नियुक्ति के फैसलों में प्रधानमंत्री मोदी को राहुल गांधी से सहमति लेनी होगी।
राहुल भारत सरकार के खर्चों की जांच (ऑडिटिंग) करने वाली लोक लेखा समिति के अध्यक्ष भी होंगे। वो सरकार के कामकाज की लगातार समीक्षा भी करेंगे। राहुल दूसरे देशों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को भी राष्ट्रीय मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण देने के लिए भारत बुला सकते हैं।
