Indore : मध्यप्रदेश के उज्जैन के पास नागदा जंक्शन स्थित बिजली कंपनी में काम करने वाले विजय प्रजापति की पत्नी सोना (27) छह साल बाद दूसरी बार गर्भवती हुईं। बेटी जीविका (6) पहले से है। अप्रैल में पांच महीने का गर्भ हो गया था। तकलीफ बढ़ने के साथ वाटर डिस्चार्ज ज्यादा होने लगा। अस्पताल में दिखाया तो सलाह मिली कि पानी बहुत कम है। गर्भस्थ शिशु को पोषण नहीं मिलने से जान का खतरा हो सकता है। तुरंत डिलीवरी कराना पड़ सकती है। हालांकि, परिस्थितियां ऐसी बन गईं कि नॉर्मल डिलीवरी हो गई।
समय से पहले डिलीवरी और ट्रिपलेट्स होने से बच्चे इतने कमजोर थे कि सांस भी ठीक से नहीं ले पाते थे। वजन सामान्य से 30% ही था। डॉक्टर ने सलाह दी कि कंडीशन क्रिटिकल है। इंदौर ले जाना होगा। एक घंटे से ज्यादा देरी मत कीजिए।
इंदौर के प्राइवेट अस्पताल में 66 दिन चले इलाज के बाद सौम्य, सौम्या और सादगी की किलकारियों से घर गूंज रहा है।
नियोनेटोलॉजिस्ट पर काम करने वाली क्लिवलैंड क्लिनिक के अनुसार, तीन बच्चे यानी ट्रिपलेट्स के जन्म की तीन परिस्थितियां अमूमन देखने में आई हैं। पहली स्थिति में फ्रेटरनल ट्रिपलेट्स होने पर तीनों बच्चों एक ही लिंग के नहीं होते या एक जैसे नहीं दिखते। DNA जैविक भाई-बहन सा होता है।
दूसरी कंडिशन में, एक ही निषेचित अंडा तीन भ्रूणों में बंटता है। तब एक ही लिंग के बच्चे पैदा होते हैं। DNA भी समान रहता है। यह दुर्लभ श्रेणी में आता है। तीसरी स्थिति में दो बच्चे तो एक जैसे होते हैं, तीसरा भाई जैसा होता है।
नागदा के केस में लिंग और चेहरे के प्रारंभिक भाव अलग हैं। ऐसे में इन्हें फ्रेटरनल ट्रिपलेट्स की श्रेणी में माना जा सकता है। एक्सपर्ट यह भी मानते हैं कि अमूमन जिन महिलाओं को एक बार डिलीवरी हो चुकी होती है, उनमें या फिर IVF में ही ट्रिपलेट्स की संभावना ज्यादा होती है। पहली बार में सामान्य गर्भधारण में ट्रिपलेट्स के रेयर चांस ही आए हैं।
