हिसार | गीता के परम रहस्य और जीवन को जीने के लिए धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष की सरल,सुंदर व्याख्या करते हुए “परमधाम” आगे बढ़ता जा रहा है। परमगुरू श्री राधेश्याम के सानिध्य में होने वाले विभिन्न कार्यों को आगे बढ़ाने में परम सन्यासी लगे हुए है। गीता परम रहस्यम,सम साधना,परम लीला जैसी उपयोगी पुस्तको के सहारे प्रचार प्रसार में लगे परम सन्यासीयो ने सेवा के प्रकल्प गौ सेवा,नंदी सेवा सहित अन्य कार्यों में जुट गए है। इधर परमधाम में आने वालो के लिए व्यवस्था बनाने का काम भी तेजी से किया जा रहा है।
परमधाम के परम गुरु राधेशयामजी सत्संग के माध्यम से बताते है कि धर्म के बहुत से अर्थ हैं कर्तव्य,अहिंसा,न्याय, सदाचरण,सद्-गुण आदि। “”धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है,’धारण करने योग्य’ सबसे उचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिए,यह धर्म हैं। “धर्म” शब्द सनातन परम्परा से आया है लेकिन ये कोई समुह नही है। धर्म मानव को मानव बनाता है।
नैतिकता,सदाचार,जीवन के समस्त कर्तव्य, श्रद्धा, दान, विश्व कल्याण की इच्छा इन सब को सूचित करने के लिए भी धर्म शब्द का प्रयोग किया जाता है।
परमगुरू श्री राधेश्याम कहते है कि मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ माने गए हैं। ये चार है धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। लेकिन इन चारों का उद्देश्य क्या है? धर्म का उद्देश्य मोक्ष है,अर्थ नहीं। धर्म के अनुकुल आचरण करो तो किसके लिए? मोक्ष के लिए।
अर्थ से धर्म कमाना है, धर्म से अर्थ नहीं कमाना। धन केवल इच्छाओं की पूर्ति के लिए मत कमाओ। अच्छे कपड़े हों, महंगे आभूषण हों, दुनियाभर के संसाधन हों, इन सबकी जीवन के लिए जरूरत है, इसमें दो राय नहीं। लेकिन जीवन का लक्ष्य यह नहीं है कि केवल इन्हीं में उलझे रहें।
सिर्फ कामनाओं की पूर्ति के लिए ही अर्थ नहीं कमाना है। हम दान कर सकें, इसलिए भी धन कमाना है। हम परमार्थ में उसको लगा सकें इसलिए भी कमाना है। वरना अर्थ, अनर्थ का कारण बनेगा।
धन परमार्थ की ओर भी ले जाएगा और इससे अनर्थ भी हो सकता है। इसीलिए धर्म का हेतु मोक्ष है, अर्थ नहीं और अर्थ का हेतु धर्म है, काम नहीं। काम का हेतु इस जीवन को चलायमान रखना है। केवल इंद्रियों को तृप्त करना काम का उद्देश्य नहीं है।
परमधाम में दिनों दिन परम संन्यासीयो की संख्या बढ़ती जा रही है।इसको देखते हुए व्यवस्था बढ़ाने में जुटा हुआ है परमधाम। मानसिक शांति, शारीरिक और आत्मिक स्थिति में सुधार हेतु देश के हर जिले में परम धाम ध्यान आश्रम स्थापित करने के संकल्प को लेकर गुरुजी स्वयं सक्रिय है। उनका मानना है कि ध्यान योग से हम अपने अंदर शांति और समरसता का अनुभव कर सकते है ध्यान योग से हमे आत्म ज्ञान प्राप्त तो होता ही है हम अपने भीतर की शक्तियों को भी पहचान सकते है। परमधाम ध्यान आश्रम इसी दिशा में आगे बढ़ रहा है

