भोपाल | उत्तरप्रदेश की योगी सरकार के बाद अब मध्य प्रदेश की मोहन सरकार में भी सबकुछ ठीक चलता नजर नहीं आ रहा है | प्रदेश की राजनीति में भी इन दिनों उत्तर प्रदेश जैसे हालात बनते नजर आ रहे हैं. कहा जा रहा है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता कई बार के विधायक रहे और शिवराज सरकार में कद्दावर मंत्री रहने वाले नेता अब . मोहन कैबिनेट में जगह न मिलने से कही पूर्व मंत्री पारस जैन की तरह पहले मंत्री से विधायक और फिर पूर्व विधायक ना बन जाए | प्रदेश में ऐसे कई नेता है जो मोहन सरकार के मंत्रिमंडल से बाहर होने के बाद पूर्व मंत्री हो चुके है जिसमे गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, जयंत मलैया जैसे नाम शामिल है और अब इन नेताओं की नाराजगी खुलकर सामने आ रही है |
मध्य प्रदेश में उपचुनाव के बाद मोहन यादव मंत्रिमंडल विस्तार के लिए सरकार और भाजपा संगठन पर दबाव बढ़ता जा रहा है. वरिष्ठ विधायकों की वरिष्ठता को ताक पर रखकर हुए फैसलों से अंदरुनी खुसफुस चल रही है. यह भाजपा संगठन के लिए परेशानी का सबब बन गया है. पहले तो संगठन ने लोकसभा और फिर उपचुनाव के नाम पर मंत्रिमंडल विस्तार टाल दिया, लेकिन कांग्रेस से आए रामनिवास रावत के मंत्री बनते ही वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी खुलकर सामने आ गई, क्योंकि प्रदेश में कई वरिष्ठ विधायक घर पर बैठे हैं, जिन्हें मंत्री बनने की आस थी.

अगर बुंदेलखंड में मंत्री पद के दावेदारों की सूची देखी जाए, तो कई वरिष्ठ विधायक जिनको लंबा राजनीतिक अनुभव है. अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. अब समय-समय पर उनकी नाराजगी भी जाहिर होने लगी है. इन वरिष्ठ विधायकों में गोपाल भार्गव, जयंत मलैया, भूपेंद्र सिंह और बृजेंद्र प्रताप सिंह जैसे दिग्गजों के नाम है. इनके अलावा कई ऐसे विधायक हैं, जो तीन-चार बार विधायक बन चुके हैं और पहली बार मंत्री पद का इंतजार कर रहे हैं.
मोहन सरकार के मंत्रिमंडल में ज्यादातर नए चेहरों को दिया मौका
संगठन की बातों पर भरोसा कर दिग्गज दावेदार चुप हो गए, लेकिन जब अमरवाड़ा उपचुनाव की वोटिंग के पहले कांग्रेस से आए रामनिवास रावत को मंत्री बनने के लिए विशेष शपथ ग्रहण समारोह हुआ, तो दिग्गजों की नाराजगी फिर सतह पर आ गई. अब संगठन फिर मंत्रिमंडल विस्तार के नाम पर दिग्गज और वरिष्ठों को शांत रहने की हिदायत दे रहा है और जल्द मंत्रिमंडल विस्तार की बात कह रहा है.
दरअसल पिछले 10 साल से भाजपा में एकतरफा पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा फैसला लिए जाते थे, लेकिन लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को अपने दावे के अनुसार सफलता न मिलने के बाद संगठन और प्रदेश सरकारों पर उनका दबाव कमजोर हुआ है. अब वो नेता जो मोदी मैजिक के आगे चुप्पी साधना बेहतर समझते थे. मौका देखकर बयानबाजी करने लगे हैं और संगठन पर दबाव बनाने लगे हैं. उनके बयान और सियासी पेंच सरकार और संगठन के लिए परेशानी खड़े करने लगे हैं. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है की कहानी मध्य प्रदेश के हाल उत्तर प्रदेश की तरह ना हो जाए और योगी और केशव प्रसाद मौर्य जैसे हालात ना बन जाए.
