Jan Samvad Express
Breaking News
Uncategorizedअंतरराष्ट्रीयमध्यप्रदेशराज्यराष्ट्रीय

एक गांव ऐसा जहा नवरात्रि में होती है रावण की पूजा : पंडाल में बैठाई जाती है रावण की प्रतिमा

हिन्दू परंपरा के अनुसार वैसे तो  नवरात्रि के 9  दिनों तक  मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है, लेकिन मध्यप्रदेश के  छिंदवाड़ा के एक गांव में आदिवासियों समुदाय के द्वारा रावण पंडाल सजाया जाता है और पूरे 9 दिन तक मूर्ति की स्थापना करके पूजा की जाती है. आदिवासी समुदाय के लोगों का कहना है कि भगवान शिव आदिवासी समाज के हमेशा से देवता रहे हैं और रावण उन्हीं का भक्त था.

हमारे  यह  नवरात्रि का पावन पर्व मां दुर्गा की अराधना के लिए  जाना जाता है. नवरात्री के दिनों में  मां दुर्गा के 9 रूपों की अलग-अलग दिनों में पूजा होती है, लेकिन मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में एक ऐसा गांव है, जहां नवरात्रि के अवसर पर एक तरफ के लोग मां दुर्गा की अराधना करते हैं, तो वहीं दूसरी और  आदिवासी समुदाय के लोग रावण की पूजा करते हैं. आदिवासियों का ये समूह जमुनिया गांव में रहता है, जो  नवरात्रि पर मां दुर्गा की नहीं, बल्कि रावण की पूजा करता है. , पंडाल में माता रानी की जगह रावण की प्रतिमा स्थापित करते है |आदिवासी समुदाय के लोग बड़े ही आस्था के साथ रावण की पूजा करते हैं. उनका कहना है कि रावण उनके लिए पूजनीय हैं क्योंकि वो उनके पूर्वज हैं. इसलिए उन्होंने रावण की मूर्ति स्थापित करके पूजा कर रहे हैं.

छिंदवाडा के इन आदिवासी समाज के लोगो का  कहना है कि वो रामायण वाले रावण की पूजा नहीं करते हैं, बल्कि अपने पूर्वज के तौर पर रावण की पूजा करते हैं. उनका कहना है कि भगवान शिव के भक्त के तौर पर भी रावण उनके लिए पूजनीय हैं. आदिवासियों का कहना है कि वो सभी धर्म का सम्मान करते हैं, मां दुर्गा के पंडाल में उनकी पूजा हो जाने के बाद ही अपने पूर्वज के तौर पर पंडाल में रावण की पूजा करते हैं.

आदिवासियों का कहना है कि उनके पूर्वज सालों से शिव भक्त रावण की पूजा करते चले आ रहे हैं, इसलिए उन्हें अपनी ये परंपरा को आगे बढ़ाना है और वो हर साल नवरात्रि पर रावण की पूजा करते रहेंगे. आदिवासियों का कहना है कि भगवान शिव हमेशा से आदिवासियों के देवता रहे है. आदिवासियों का कहना है कि रावण बहुत ही बड़ा विद्वान भी था, हम उसे ज्ञानी के तौर पर भी पूजते हैं.

आदिवासियों में मातृपक्ष सर्वोपरि

आदिवासियों में वंश परंपरा मातृसत्तात्मक होती है। रावण की माता कैकसी जिसे निकशा या केशनी के नाम से भी जाना जाता है, वह रावण के नाना सुमाली और मेरुमति की पुत्री थीं। यही वजह है कि मातृसत्तात्मक पद्धति होने से रावण को आदिवासी कुल का माना जाता है

रावण का सरनेम ‘मड़ावी’ था

प्राध्यापक मधुकर उइके कहते हैं कि वाल्मीकि द्वारा लिखे गए रामायण में तकरीबन 1200 श्लोक थे। इसमें रावण को कभी नीचा कर के नहीं दिखाया गया, लेकिन वर्तमान के रामायण में कई अध्याय बाद में जोड़े गए। नए रामायण में 2400 श्लोकों का उल्लेख मिलता है। आदिवासी मान्यताओं के अनुसार रावण का सरनेम ‘मड़ावी’ था।
उसकी पूजा को ‘रावनेर’ पूजा कहा जाता है। आदिवासी में केवल गोंड ही नहीं, बल्कि माड़िया गोंड, कोरकू गोंड आदि भी रावण की पूजा करते हैं। नागपुर के गोंडवाना विकास मंडल में भी रावण की इन दिनों भव्य पूजा दशहरे के दिन की जाती है।

यह आदिवासी समाज के लोग  नहीं करते हैं रावण दहन

आदिवासी समुदाय के लोग दशहरा के मौके पर रावण दहन का विरोध करते हैं. इसके लिए उन्होंने कई बार सरकार से इसकी अपील भी कि रावण दहन को बंद कर दिया जाए. उनका कहना है कि रावण की मूर्ति की स्थापना वो लोग करते हैं, ऐसे में रावण दहन पर रोक लगाई जानी चाहिए. आदिवासी समाज के लोग रावण के बेटे मेघनाथ की भी पूजा करते हैं. साथ ही वो नवरात्रि में पूरे 9 दिनों तक रावण की पूजा करते हैं.

Related posts

वायनाड में मरने वालो की संख्या 100 पार और 200 से ज्यादा घायल: मामला वायनाड में हुई तेज बारिश के बाद लैंडस्लाइड

jansamvadexpress

झारखण्ड चुनाव के दोरान मुख्यमंत्री सोरेन के PS के ठिकानो पर IT की दबिश

jansamvadexpress

मंगलवार को इंदौर उज्जैन के हनुमान मंदिरों में हुए विशेष श्रंगार

jansamvadexpress

Leave a Comment

Please enter an Access Token