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केमिकल फेक्ट्री में काम करना रोजगार नहीं : कर्मचारियों के लिए है मौत का सौदा , नागदा केमिकल फेक्ट्री से कई लोग प्रभावित

Chemical Factory Job Health Risks:केमिकल फैक्ट्रियों में काम करना कई तरह के खतरों से भरा होता है. इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोगों को कई गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है. इन बीमारियों के कारण उनकी जिंदगी भी खतरे में पड़ सकती है, इसलिए, इन फैक्ट्रियों में काम करने वालों को सेफ्टी उपाय अपनाने होते हैं.

हालांकि, फिर भी इनके लिए केमिकल्स से बच पाना आसान नहीं होता है. इसका असर उनकी पूरी जिंदगी पर पड़ता है. ऐसे में चलिए जानते हैं केमिकल फैक्ट्री में काम करना क्यों खतरनाक है, वर्कर्स को कौन-कौन सी बीमारियां हो सकती हैं…

केमिकल फैक्ट्री में नौकरी करना क्यों खतरनाक

1. जहरीले केमिकल्स के संपर्क में आना

केमिकल फैक्ट्रियों में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स जहरीले और खतरनाक हो सकते हैं, जो काम करने वालों की सेहत (Health Problems of Chemical Factory Workers) को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

2. एयर पॉल्यूशन

केमिकल फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं और गैसें वायु प्रदूषण का कारण बन सकती हैं, जो फेफड़ों की बीमारियों का कारण बन सकती हैं. इससे कैंसर तक का खतरा हो सकता है. इन धुंओं से कई तरह की प्रॉब्लम्स हो सकती हैं.

3. आग और विस्फोट का खतरा

केमिकल फैक्ट्रियों में आग और विस्फोट का खतरा हमेशा बना रहता है, जो काम करने वालों की जान को खतरे में डाल सकता है. यही कारण है कि हमेशा सेफ्टी उपाय अपनाए जाते हैं. यहां काम करने वालों के कपड़े भी अलग होते हैं.

4. त्वचा और आंखों की समस्याएं
केमिकल फैक्ट्रियों में उपयोग होने वाले केमिकल्स त्वचा और आंखों की समस्याएं पैदा कर सकते हैं. इसकी वजह से स्किन पर रैशेज, एलर्जी जैसी समस्याएं हो सकती हैं. आंखों को भी गंभीर नुकसान पहुंच सकते हैं.
5. कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियां

केमिकल फैक्ट्रियों में काम करने वालों को कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा अधिक होता है. अगर संभलकर काम न किया जाए तो कम उम्र में ही लोग इन बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं, जो आगे चलकर जानलेवा बन सकते हैं.

6. मानसिक तनाव और शारीरिक चोट का डर

केमिकल फैक्ट्रियों में काम करने वालों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है. केमिकल फैक्ट्रियों में काम करने वालों को शारीरिक चोटें लगने का खतरा अधिक होता है.

केमिकल फैक्ट्री में काम करने वालों को होने वाली बीमारियां

कैंसर- केमिकल फैक्ट्रियों में इस्तेमाल होने वाले कई केमिकल कैंसर के कारण बन सकते हैं.

फेफड़ों की बीमारियां- केमिकल फैक्ट्रियों में उठने वाली धूल और गैसें फेफड़ों की बीमारियों का कारण बन सकती हैं.

त्वचा की बीमारियां- केमिकल फैक्ट्रियों में उपयोग होने वाले केमिकल्स स्किन की बीमारियों का कारण बन सकते हैं.

न्यूरोलॉजिकल बीमारियां- केमिकल फैक्ट्रियों में उपयोग होने वाले रसायन न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का कारण बन सकते हैं.

हार्ट डिजीज- केमिकल फैक्ट्रियों में काम करने वालों को हार्ट डिजीज होने का खतरा अधिक होता है.

केमिकल फैक्ट्री से होने वाले कुछ रोग ये रहे:

  • आंखों और श्वसन तंत्र में जलन
  • केंद्रीय तंत्रिका तंत्र अवसाद
  • चक्कर आना
  • अस्थमा
  • कैंसर
  • जन्मजात विकृतियां

नागदा की  केमिकल फेक्ट्री  से कई लोग कई  गांव प्रभावित

उद्योगिक शहर नागदा में कई सालों से चल रहे बड़े उद्योगों के निकलने वाले प्रदूषित कचरे से आसपास के गांवों में भंयकर प्रदूषण है. नागदा से सटा गांव परमार खेड़ी भी एक ऐसा ही गांव है जहां 125 घरों की बस्ती है. नागदा तहसील से 12 किलो मीटर की दूरी पर बसे इस गांव को अब दिव्यांग गांव के नाम से पहचाना जाने लगा है. अकेले परमारखेड़ी गांव में पड़ताल करने पर 40 से अधिक दिव्यांग देखने को मिले. यहां लोगों में कई प्रकार की दिव्यांगता देखी गई तो कोई अस्थि बाधित है.कोई श्रवण बाधित, कोई द्रष्टि बाधित तो कोई मानसिक दिव्यांग.

नागदा में दो बड़े उद्योग ग्रेसिम और लेंसेक्स से निकलने वाला प्रदूषित पानी की बड़ी मात्रा में चम्बल नदी में बहाया जा रह है.इसके कारण नदी के आसपास के इलाके का जमा पानी, ग्राउंड वाटर सहित बोरिंग, हेंड पम्प, कुएं का पानी भी दूषित हो चुका है. यहां के पानी में फ्लोराईड की मात्रा अधिक है. इसके कारण फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो रही है जिसमें आदमी के शरीर में विकलांगता आ जाती है.

केमीकल फेक्ट्री में उत्पादित होने वाला कास्टिक सोडा पहुंचाता है आँखों को नुकसान

कास्टिक सोडा प्रणालीगत विषाक्तता उत्पन्न नहीं करता है, लेकिन यह बहुत संक्षारक है और इसके संपर्क में आने वाले सभी ऊतकों में गंभीर जलन पैदा कर सकता है। सोडियम हाइड्रॉक्साइड आँखों के लिए विशेष रूप से ख़तरा है, क्योंकि यह प्रोटीन को हाइड्रोलाइज़ कर सकता है, जिससे आँखों को गंभीर क्षति पहुँच सकती है। अक्सर इसका असर आप नागदा में प्रवेश लेने के साथ ही देख सकते है यह दूर से ही केमिकल की स्मेल आपको साँस में दिक्कत उत्पन्नी कर देती है और आँखों में जलन का अहसास होने लगता है , नागदा का हर दूसरा इन्सान आँख और गले की समस्या से घिरा हुआ है |

1972 में, नागदा में स्थित  ग्रासिम ने  रसायन व्यवसाय की स्थापना कंपनी की वीएसएफ इकाई के लिए कास्टिक सोडा बनाने के लिए की गई थी। आज, यह भारत के सबसे बड़े कास्टिक सोडा उत्पादकों में से एक है

2016 में, आदित्य बिड़ला केमिकल्स इंडिया लिमिटेड (ABCIL) के साथ ग्रासिम के विलय ने कंपनी की कास्टिक सोडा क्षमता को 452 KTPA से बढ़ाकर 884 KTPA करने में मदद की, जिससे यह उस समय भारत में कास्टिक सोडा का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया।

ग्रेसिम पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यूपी लगा चुकी है एक करोड़ का जुर्माना

अमर उजाला की एक खबर के अनुसार वर्ष 2019 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने ग्रेसिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड पर 1 करोड़ रुपये का अंतरिम जुर्माना लगा चूका  है। ग्रेसिम पर यह जुर्माना उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में स्थित उसकी फैक्ट्री में बाई-प्रॉडक्ट के तौर पर हासिल पारे का भारी मात्रा में स्टॉक जमा करने के लिए लगाया गया है। एनजीटी ने कंपनी को यह जुर्माना केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पास जमा कराने का आदेश दिया, जो इस रकम का उपयोग क्षेत्र में दोबारा पर्यावरण को उचित स्तर पर लाने का काम करेगा।

 

ग्रेसिम केमिकल के अलावा लैंक्सेस कंपनी भी करती नागदा में केमिकल का उत्पादन
लैंक्सेस कंपनी रासायनिक मध्यवर्ती, योजक, विशिष्ट रसायन, और उपभोक्ता संरक्षण उत्पाद बनाती है. लैंक्सेस के कुछ उत्पाद ये रहे:
  • फॉस्फोरस पेंटोक्साइड से बने उत्पाद, जिनका इस्तेमाल स्नेहक उद्योग, विशेष औद्योगिक क्लीनर, और पिगमेंट पेस्ट में किया जाता है
  • बहुकार्यात्मक योजक, जिनका इस्तेमाल पेंट, धातु के काम, और धातु में किया जाता है 
लैंक्सेस के बारे में कुछ और जानकारीः
  • लैंक्सेस की स्थापना 2004 में हुई थी. 
  • लैंक्सेस के शेयरधारकों में मुख्य रूप से संस्थागत निवेशक हैं. 
  • लैंक्सेस के उत्पादन स्थल उत्तरी अमेरिका के 14 राज्यों और कनाडा के ओन्टारियो प्रांत में हैं. 
  • 2021 में लैंक्सेस ने एमराल्‍ड कलामा केमिकल का अधिग्रहण किया था

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