‘बिलकिस के दोषियों को जिन डॉक्यूमेंट्स के आधार पर छोड़ा गया, उनमें बहुत लूप होल्स थे। मैं लिखकर दे सकती थी कि उन सबको दोबारा जेल जाना ही होगा। एक अधूरी फैक्ट शीट थी, उसी ने उन्हें दोबारा जेल भेज दिया। और इस बार का जजमेंट बहुत स्ट्रॉन्ग है। अब बिलकिस को इस डर में नहीं जीना है कि उसके दोषी बाहर आ सकते हैं। कम से कम 14 साल तो वे रिहाई के लिए अप्लाय भी नहीं कर पाएंगे।’
बिलकिस बानो की वकील शोभा गुप्ता केस का अपडेट देते हुए ये दावा करती हैं।
गुजरात में 2002 दंगों के दौरान हुए बिलकिस बानो गैंगरेप के 11 दोषियों को समय से पहले जेल से रिहा कर कर दिया गया था। राज्य सरकार के इस फैसले को 8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। कोर्ट ने दोषियों को 2 हफ्ते में सरेंडर करने के लिए कहा था, जिसके बाद 21 जनवरी को उन्होंने सरेंडर कर दिया।
बिलकिस के दोषी 15 अगस्त, 2022 को दया नीति के तहत रिहा किए गए थे। हालांकि, उनकी रिहाई के लिए दिए गए डॉक्यूमेंट ही उनकी माफी रद्द होने का आधार बन गए।
सवाल: 15 अगस्त, 2022 में बिलकिस के दोषी रिहा हुए। फिर आपको दोबारा लड़ाई लड़नी थी, आपके सामने सबसे बड़ा चैलेंज क्या था?
जवाब: चैलेंज तो यही था कि इतनी बड़ी लड़ाई दोबारा लड़नी है। पहली बार तो सारे दोषी जेल में थे, लेकिन इस बार सब बाहर थे। उसी स्टेट या जिले में नहीं, बल्कि उसी गांव में थे, जहां बिलकिस का परिवार रहता है।
दूसरा चैलेंज या कहें सवाल था कि क्या सोसायटी उन लोगों को बाहर रखना चाहती है, क्योंकि उनके स्वागत में हुए प्रोग्राम से बहुत गलत मैसेज गया था।
तीसरी बात बिलकिस ये लड़ाई अकेले क्यों लड़े क्योंकि दोषियों का अपराध सोसायटी के खिलाफ था, बिलकिस तो बस एक जरिया बनी। बिलकिस का जीवन तो तबाह हुआ ही, लेकिन सोसायटी में इतना बड़ा अपराध हो जाए और अपराधी छूट भी जाएं। तो सवाल था कि क्या अकेले ये बिलकिस की लड़ाई है।
सवाल: आपको कब पता चला कि दोषियों को रिहा करने का फैसला किया गया है?
जवाब: जब सबको पता चला, तभी बिलकिस और मुझे भी पता चला। 13 अगस्त को बिलकिस के पति याकूब का फोन आया था। वे ऐसे ही फोन नहीं करते हैं। इसलिए मुझे लगा कि अचानक क्या हो गया। याकूब क्यों फोन कर रहा है।
उन्होंने कहा, दीदी गांव में कुछ हलचल है। क्या सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कोई ऑर्डर आया है। क्या सब रिहा हो रहे हैं।
याकूब ने रिहाई के बारे में मुझसे पूछा तो मैं बिल्कुल ब्लैंक थी क्योंकि इसका तो अंदाजा किसी को नहीं था।
मैंने याकूब से कहा कि ऐसा तो कुछ नहीं है। हो सकता है कोई अफवाह हो। फिर मैंने अपनी टीम को बोला कि पता करो। ऑर्डर चेक करो, जर्नल चेक करो। लेकिन कुछ नहीं निकला।
14 अगस्त को फिर फोन आया कि गांव में कानाफूसी है, कुछ तैयारियां भी हो रही हैं। मैंने फिर कोर्ट ऑर्डर चेक करवाए। जैसे पता कर सकती थी किया, पर कुछ पता नहीं लगा।
15 अगस्त की सुबह स्वतंत्रता दिवस के प्रोग्राम से करीब एक-डेढ़ घंटे बाद पता चला कि बिलकिस के दोषी रिहा हो गए। हमें मीडिया से ही पता चला। उनके स्वागत का कार्यक्रम चर्चा में आया, जिसमें औरतें पैर छू रहीं थीं, माला पहना रहीं थीं, आरती उतार रहीं थीं।
मेरे लिए ये बहुत शॉकिंग या कहें डिस्गस्टिंग था। क्या ऐसे अपराधियों का सोसायटी में स्वागत हो सकता है। उससे भी बड़ी बात बिलकिस और दूसरे गवाहों को कोई सूचना या नोटिस तक नहीं पहुंचा।
सब इतना गुपचुप हुआ कि किसी को कानों-कान खबर नहीं हुई। आइडियली बिलकिस के पास शो-कॉज नोटिस जाना चाहिए था। लोकल पुलिस को बिलकिस को इन्फॉर्म करना चाहिए था।
रिमीशन के तहत रिहाई में ये फैक्टर शामिल होते हैं कि पीड़ित पर और सोसायटी पर अपराधियों की रिहाई का असर क्या होगा। ये प्रक्रिया तो हुई ही नहीं।
सवाल: बिलकिस का फर्स्ट रिएक्शन क्या था?
जवाब: क्या रिएक्शन होगा, बिलकिस के साथ पहले भी धोखा हुआ और दोबारा भी धोखा हुआ। जिस पुलिस से उसे प्रोटेक्शन मिलनी चाहिए थी, जिसे लॉ एंड ऑर्डर मेंटेन करना था, जिसे FIR ठीक से लिखनी थी, जिसे केस को ठीक से इन्वेस्टिगेट करना था, उसने बिलकिस को कभी प्रोटेक्शन नहीं दी और FIR भी बड़ी मुश्किल से लिखी।
FIR भी ऐसी लिखी कि उससे किसी अपराधी की पहचान न हो सके। बिलकिस ने 12 लोगों के नाम लिए थे, लेकिन FIR में 400-500 लोगों की भीड़ के हमले की बात कही गई।
जहां घटना हुई, वो बहुत संकरा जंगल है। वहां 500 लोग कहां से आ गए और किन वाहनों से आए होंगे। इसलिए ये FIR तो वैसे भी बेकार हो जानी थी। मेडिकल रिपोर्ट होनी थी, वो भी नहीं हुई। स्टेट को बिलिकिस के साथ खड़े होना था, पर वो उन लोगों के साथ था, जिन्हें सजा मिलनी चाहिए थी। मतलब इस लड़ाई में पुलिस और स्टेट न पहले बिलकिस के साथ थे, न अब हैं।
पहले तो कम से कम अपराधी जेल में थे, लेकिन अब गांव में खुले घूम रहे थे। तो रिएक्शन क्या होगा, इसे समझने के लिए बिलकिस की तरह सोचना होगा।
बिलकिस के स्टेटमेंट में साफ है कि पुलिस से उसे धमकियां मिलीं। पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट लगा दी। मतलब बिलकिस को स्टेट और उसकी पुलिस ने न्याय दिया ही नहीं। न्याय मिलने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट में केस आने के बाद शुरू हुई।
CBI ने अच्छी इनवेस्टिगेशन रिपोर्ट सौंपी। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल बाहर भेजा। तब जाकर न्याय मिला था। अब बिलकिस फिर उसी स्टेट के सामने खड़ी थी, जिसने उसकी जगह अपराधियों का साथ दिया था।
