उज्जैन { Nasir Belim} || मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित विक्रम उद्योग पूरी के फेस 02 को लेकर विरोध के सुर शुरू हो गए है , उद्योग पूरी के दुसरे चरण के लिए जिन किसानो की जमीन का अधिग्रहण किया जाना है उनके द्वारा सरकार के इस प्रोजेक्ट को लेकर मोर्चा खोल दिया गया है , किसान किसी भी स्थिति में अपनी उपजाऊ जमीन उद्योगपतियो को नहीं देना चाहते है | विक्रम उध्योग्पुरी उज्जैन के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा किसानो की भूमि अधिग्रहण कर प्रायवेट कम्पनी को उद्योग के लिए भूमि दी जा रही है इसको लेकर किसान नाराज है और उक्त प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे है |
किसानो का कहना है उक्त जमीन पूर्णता सिंचित है और साल में तीन फसल की पैदावार करती है जिससे 7 गांव के 700 किसान जुड़े हुए है और इन 700 किसानो से 15 हजार लोगो का पेट पल रहा है , ऐसे में गांव की सिंचित 2500 बीघा जमीन निजी उद्योग के लिए लेना ठीक नहीं है |
गाँव के 95 प्रतिशत किसानो की आपत्ति
सितम्बर 2024 को MPIDC के इस प्रोजेक्ट के लिए 60 दिन का समय दावे आपत्ति के लिए रखा गया था जिसकी विधिवत जानकारी पेपर पब्लिकेशन के माध्यम से जारी की गई थी , उक्त समय सीमा के दोरान गांव के 95 प्रतिशत प्रभावित किसानो के द्वारा प्रोजेक्ट पर आपत्ति दर्ज की गई है , शेष 05 प्रतिशत में सरकारी जमीन है जिस पर कोई आपत्ति नहीं आई | किस्नाओ के अनुसार सुचना की तारीख 03/09/2024 के आधार पर धारा 15(1) के अधीन 60 दिन में आपत्ति दर्ज करवानी थी उसके अनुसार 700 में से 680 किसानो के द्वारा दिनांक 07/10/2024 को आपत्ति दर्ज करवाई गई है |
ये गाँव हो रहे प्रभावित
राज्य सरकार अगर भूमि अधिग्रहण करती है तो उसमे कई गांव अधिग्रहित हो जाएँगे उसमे चेनपुर , हंसखेड़ी , कडछा , नरवर , मुन्जाखेड़ी , गांवडी , माधोपुर पिपलोदा द्वारकाधीश शामिल है , इन गाँव के 700 किसानो की 2500 बीघा जमीन है जो योजना में जाने की संभावना है और ऐसा होता है तो यह रहने वाले 15 हजार लोग बेघर हो जाएँगे
7 पीढ़ी 7 गांव 700 किसान
राज्य सरकार विक्रम उद्योगपूरी के दुसरे चरण का काम जिस जमीन पर शुरू करने जा रही है वह के किसानो का कहना है उक्त जमीन से सात गाँव के 700 किसान की सात पीढ़ी जुडी हुई , अगर सरकार इस जमीन को अधिग्रहण करती है तो कई परिवार बेघर होंगे और कई युवा बेरोजगार हो जाएँगे , अन्नं दाता के पेट पर लात मारकर सरकार उद्योगपति का पेट भरने का काम कर रही है |
स्कूल कॉलेज के लिए जमीन ली और खोल दिए उद्योग
विक्रम उद्योगपूरी के लिए वर्ष 2011-12 में किसानो की जमीन का पहली बार अधिग्रहण किया गया था उस दोरान 493 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया था | किसान दिलीप चौधरी का आरोप है की उस दोरान भोले भाले किसानो को झूठ बोल कर जमीन का अधिग्रहण किया गया था
किसानो को कहा गया था की उनकी जमीन पर एजुकेशन हब बनाया जाएगा और यह पर IIT कॉलेज , IIM कॉलेज, मेडिकल कॉलेज और छात्रों के रहने के लिए रेजिडेंट बिल्डिंग का निर्माण किया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं किया गया |
आखिर क्या है MPIDC का प्लान क्यों पढ़ रही जमीन की जरुरत
मध्यप्रदेश सरकार प्रदेश के अलग अलग शहरो में उद्योग को बढ़ावा देने का काम कर रही है , इसमें से उज्जैन भी एक है , शहर से कुछ ही दुरी पर उद्योग नगरी का निर्माण किया गया है जिसका नाम विक्रम उद्योग पूरी रखा गया है ये देवास रोड नरवर में स्थित है साल 2011-12 में इस के निर्माण के लिए 493 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया था सभी जमीन किसानो से ली गई थी | आज जाया बड़े बड़े उद्योग स्थापित हो रहे है और देश भर के जाने माने उद्योग पति अपनी यूनिट को स्थापित कर रहे है |
वर्तमान की स्थिति में MPIDC (Madhya Pradesh Industrial Development Corporation) के पास नए उद्योग को लाने के लिए जमीन नहीं बची है जबकि 35 से ज्यादा उद्योग संचालको ने प्लाट के लिए अप्लाय किया हुआ है |
ऐसे में MPIDC ने विक्रम उद्योग पूरी से लगी 493 हेक्टेअर किसानो की जमीन का और अधिग्रहण करने का मन बनाया है जिसके लिए जमीन का चयन कर लिया गया है | किसानो को मनाने का कम चल रहा है

देश में किसानों ने जमीन अधिग्रहण के ख़िलाफ़ कई बार आंदोलन किया है:
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साल 2024 में पंजाब के किसानों ने दिल्ली कूच करने का एलान किया था. इस आंदोलन की वजह सरकारी प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन अधिग्रहण थी. मलेरकोटला में दिल्ली-कटड़ा एक्सप्रेस-वे को लेकर ज़मीन अधिग्रहण के ख़िलाफ़ किसानों ने प्रदर्शन किया था. इस दौरान पुलिस और किसानों के बीच झड़प भी हुई थी. -
साल 2015 में मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लाया था. इस अध्यादेश में ज़मीन अधिग्रहण के लिए किसानों की सहमति का प्रावधान खत्म कर दिया गया था. -
किसान आंदोलन से जुड़ी कुछ और घटनाएं:
- साल 1928 में किसानों को ‘बारदोली सत्याग्रह’ में सफलता मिली थी.
- साल 1937 से 1939 तक किसान आंदोलन का एक नया दौर शुरू हुआ था.
- साल 1917 में चंपारण आंदोलन हुआ था.
- साल 1918 में खेड़ा सत्याग्रह हुआ था.
- साल 1946-1947 में तेभागा आंदोलन हुआ था.
सरकारी प्रोजेक्ट के लिए ज़मीन अधिग्रहण को लेकर कई बार किसान आंदोलन हुए हैं:
- इंदौर में अहिल्या पथ योजना को लेकर किसानों का आंदोलन: इस योजना के तहत 10 गांवों की 1,179 हेक्टेयर कृषि भूमि अधिग्रहित की जानी थी. किसानों का कहना था कि उन्हें कम मुआवज़ा मिल रहा है और आईडीए ने बिल्डरों के साथ मिलकर इस योजना को तय कर लिया है.
- पंजाब में दिल्ली-कटड़ा एक्सप्रेस-वे को लेकर किसानों का आंदोलन: इस प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित की गई ज़मीन पर कब्ज़ा वापस लेने के लिए किसानों ने प्रदर्शन किया था.
- बक्सर ज़िले के चौसा प्रखंड में सतलुज जल विद्युत निगम के कोयला बिजली संयंत्र के लिए किसानों से ज़मीन अधिग्रहित की गई थी. किसानों का कहना था कि इस प्रोजेक्ट में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, और पुनर्स्थापन से जुड़े कानूनों का पालन नहीं किया गया.





