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कैश कांड: जस्टिस यशवंत वर्मा की बढ़ेंगी मुश्किलें, मॉनसून सत्र में महाभियोग लाने की तैयारी में केंद्र सरकार!

नई दिल्ली ||  कैश कांड मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ केंद्र सरकार संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है। न्यूज एजेंसी ने सरकार से जुड़े सूत्रों के हवाले से बताया कि 15 जुलाई के बाद शुरू होने वाले मानसून सत्र में यह प्रस्ताव लाया जा सकता है। हालांकि सरकार अभी इस बात का इंतजार कर रही है कि जस्टिस वर्मा खुद इस्तीफा दे दें।

दरअसल, जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित घर में 14 मार्च की रात आग लगी थी। उनके घर के स्टोर रूम से 500-500 रुपए के जले नोटों के बंडलों से भरे बोरे मिले थे। जिसके बाद उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया था।

22 मार्च को इस मामले में तत्कालीन CJI ने जांच समिति बनाई थी। कमेटी ने 3 मई को रिपोर्ट तैयार की और 4 मई को CJI को सौंपी थी। कमेटी ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों को सही पाया और उन्हें दोषी ठहराया था।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और न्यायिक जवाबदेही से जुड़े प्रावधानों के तहत, किसी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाने के लिए संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है. राज्यसभा में प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं. लोकसभा में 100 सदस्यों समर्थन जरूरी होता है.

 

क्या होता है महाभियोग 

जब किसी बड़े अधिकारी या प्रशासक पर विधानमंडल के समक्ष अपराध का दोषारोपण होता है तो इसे महाभियोग कहा जाता है। अभियोग जो राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, कैबिनेट सदस्य, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश या अन्य संघीय न्यायाधीश को पद से हटाने के योग्य अपराध के आरोप लगाता है। महाभियोग के बाद, अधिकारी को हटाने के लिए एक परीक्षण और दोषसिद्धि की आवश्यकता होती है। कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन जे ने 2011 में राज्य सभा द्वारा उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद इस्तीफा दे दिया था। वे पहले ऐसे न्यायाधीश थे जिन पर उच्च सदन द्वारा कदाचार के लिए महाभियोग लगाया गया था।

जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से कर दिया था इनकार

जानकारी के मुताबिक, तत्कालीन सीजेआई खन्ना ने वर्मा से इस्तीफा देने का आग्रह किया था, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया. हालांकि, न्यूज एजेंसी के मुताबिक सरकारी अधिकारी ने कहा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई की औपचारिक प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है. वहीं, जस्टिस वर्मा ने अपनी बेगुनाही का दावा किया है और यह कहा है कि उनके दिल्ली स्थित आवास के आउटहाउस में आग लगने के बाद जो नकदी बरामद हुई, उसका उनसेकोई संबंध नहीं है.

2018 में भी 97.85 करोड़ रुपए के घोटाले में नाम जुड़ा था

इससे पहले 2018 में गाजियाबाद की सिम्भावली शुगर मिल में गड़बड़ी के मामले में जस्टिस वर्मा के खिलाफ CBI ने FIR दर्ज की थी।  एक नेशनल टीवी चेनल  की रिपोर्ट के मुताबिक ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने मिल में गड़बड़ी की शिकायत की थी। शिकायत में कहा था कि शुगर मिल ने किसानों के लिए जारी किए गए 97.85 करोड़ रुपए के लोन का गलत इस्तेमाल किया है।

जस्टिस वर्मा तब कंपनी के नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थे। इस मामले में CBI ने जांच शुरू की थी। हालांकि जांच धीमी होती चली गई। फरवरी 2024 में एक अदालत ने CBI को बंद पड़ी जांच दोबारा शुरू करने का आदेश दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को पलट दिया और CBI ने जांच बंद कर दी।

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